Gajendra Moksha in Hindi Pdf

नमस्कार दोस्तों, pdfrail.com के और एक नए पोस्टGajendra Moksha in Hindi Pdf पोस्ट पर आपका स्वागत है।आज हम आपको इस पीडीएफ़ को डाउनलोड करने का लिंक मुहैया कर रहे हैं जिसे आप नीचे दीए गए डाउनलोड बटन पे क्लिक करके इसे आसानी से सेव कर सकते हैं।
इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से मनुष्य के संकटों का निवारण होता है। समस्त पापों का वीनाश हो कर भगवान विष्णु की कृपा सदेव बने रहते हैं तथा यश और स्वर्ग की प्राप्ति होती है। गजेंद्रमोक्ष का पाठ कब और कैसे करना चाहिए और इसे पाठ करने से क्या लाभ मिलता है इन सब के बारे में जानने के लिए आप नीचे जरूर पढ़ें।
Gajendra Moksha in Hindi
श्रीमद्भागवत महापुराण के आठवें स्कन्ध के दूसरे,तीसरे,चौथे अध्याय में ‘गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र’ और इससे सम्बधित कथा है। इस स्तोत्र में ग्राह यानि मगरमच्छ के साथ गजेन्द्र के युद्ध का वर्णन है। इस स्तुति को गजेंद्र अपने हृदय में भगवान् को स्थिर कर मन में ही स्तवन करता है। यह एक ऐसी कथा है जिसके भावपूर्वक सुनने से ही आँखे अश्रुपूरित हो जाएगी। इस कथा में करुणरस और भक्तिरस का समन्वय है। इसकी भाषा और भाव सिद्धांतों के प्रतिपादक और बोहोत ही मनोहर है। आईए गजेन्द्र मोक्ष स्त्रोतम की पूरे कहानी को जानते हैं।
Gajendra Moksha Ki Katha
एक हाथी अपने परिवार के साथ जंगल में घूम रहा था। जब उसे प्यास लगती है तब वो सरोवर के किनारे पानी पीने पहुँच जाता है। सरोवर में कमल के फूल देखकर हाथी जल क्रीड़ा करने पहुँच जाता है। इतने में एक मगरमच्छ उस हाथी का पैर पकड़ लेता है । हाथी के सभी परिवार वाले उसे बाहर निकालने की कोशिश करते हैं और अंत में वहीं छोड़कर चले जाते हैं। हाथी बाहर आने की कोशिश करता है, लेकिन मगरमच्छ उसका पैर नहीं छोड़ता है। जब गजेन्द्र अपने आप को ग्राह के चंगुल से छुड़ा नहीं पाया तो उसने अपने आप को उस संकट से निकालने के लिए जिस स्तोत्र से भगवान् विष्णु की स्तुति की; वही स्तोत्र ‘गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र’ कहलाता है। इस स्तुति को सुनकर भगवान विष्णु वहाँ आते हैं और अपने सुदर्शन चक्र को तेजी से फेक कर ग्राह का मुंह काट देते हैं और बेदना से भरे गजेन्द्र को मुक्त कर देते हैं। तभी से यह इस स्तोत्र सभी तरह के संकटों से मुक्ति के मार्ग दिखाता है ।
श्री गजेंद्र मोक्ष पाठ करने की सम्पूर्ण विधि :-
– इसका पाठ चाहे प्रातःकाल,मध्याह्न काल,सायंकाल हो या फिर चाहे रात्रकल हो कभी भी किसी भी समय किया जा सकता है।
– इस स्तवन का पाठ ब्राह्ममुहूर्त में भगवान् श्री हरी के सामने या कही पर भी भाव पूर्वक कर सकते हैं।
– जब आपको समय मिल जाए, स्नान ध्यान के बाद बढ़े भाव से आप इसके जाप करें।
– इसका विशेष महत्त्व यह भी है कि अगर आप संस्कृत में भी नहीं कर सकते हो तो हिंदी में भी इसका पाठ कर सकते हो। हिंदी में इसकी कथा भी सुन सकते हो और जितना पाठ करने से आपको फल प्राप्त होगा उतना ही आपको कथा सुनने से होगा। साथ ही साथ ऐसा भी माना जाता है कि इस पाठ से घर में स्थिर लक्ष्मी का निवास भी होता है ।
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्रम के लाभ
यह स्तोत्र सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला स्तोत्र है।
– यह उत्तम स्तोत्र (कथा) का पाठ जो करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति निश्चित होती है। भगवान उसकी रक्षक होते हैं।
– इसका निरंतर स्तवन करने से सभी प्रकार के विघ्न और बाधाएं दूर होती हैं और मृत्यु पर्यन्त कभी नरक में नहीं जाता ऐसा स्वयं भगवान् का वचन है।
– जाने और अनजाने में अगर कोई पाप हुए हैं वो सभी पापों का विनाश करने वाला यह एक उत्तम आख्यान है।
– काफी सारा संघर्ष करने के बाद या सामाजिक दृष्टि से बहुत काम करने के बाद भी अगर हमें कोई यश मान सम्मान प्राप्त नहीं होता तो इस पाठ से अवश्य समाज में परिवार में मान और सम्मान की प्राप्ति होती है।
– आर्थिक सम्पन्नता आती है।
– कर्ज से मुक्ति पाने के लिए इसका पाठ लाभकारी है। दुस्वप्न के कुप्रभाव का नाश होता है।
– अवांछित स्थिति और कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।
– पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्रम
श्रीमद्भागवतान्तर्गत
गजेन्द्र कृत भगवान का स्तवन
श्री शुक उवाच – श्री शुकदेव जी ने कहा
एवं व्यवसितो बुद्ध्या समाधाय मनो हृदि ।
जजाप परमं जाप्यं प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम ॥१॥
बद्धि के द्वारा पिछले अध्याय में वर्णित रोति से निश्चय करके तथा मन को हदय देश में स्थिर करके वह गजराज अपने पूर्व जन्म में सीखकर कण्ठस्थ किये हुए सर्वश्रेष्ठ एवं बार-बार दोहराने योग्य निम्नलिखित स्तोत्र का मन ही मन पाठ करने लगा ॥१॥
गजेन्द्र उवाच गजराज ने (मन ही मन) कहा-
ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम ।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि ॥१॥
जिनके प्रवेश करने पर (जिनकी चेतना को पाकर) ये जड शरीर और मन आदि भी चेतन बन जाते हैं (चेतन की भांति व्यवहार करने लगते हैं), ‘ॐ’ शब्द के द्वारा लक्षित तथा सम्पूर्ण शरीर में प्रकृति एवं पुरुष रूप से प्रविष्ट हुए उन सर्व समर्थ परमेश्वर को हम मन ही मन नमन करते हैं ॥२॥
यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयं ।
योस्मात्परस्माच्च परस्तं प्रपचे स्वयम्भुवम ॥३॥
जिनके सहारे यह विश्व टिका है, जिनसे यह निकला है, जिन्होंने इसकी रचना की है और जो स्वयं ही इसके रूप में प्रकट हैं फिर भी जो इस दृश्य जगत से एवं इसकी कारणभूता प्रकृति से सर्वथा परे (विलक्षण) एवं श्रेष्व हैं उन अपने आप बिना किसी कारण के बने हुए भगवान की मैं शरण लेता हूं ॥३॥
यः स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं क्वचिद्विभातं क्व च तत्तिरोहितम ।
अविद्धदृक साक्ष्युभयं तदीक्षते स आत्ममूलोवतु मां परात्परः ॥४॥
अपने संकल्प शक्ति के द्वार अपने ही स्वरूप में रचे हुए और इसीलिये सृष्टिकाल में प्रकट और प्रलयकाल में उसी प्रकार अप्रकट रहने वाले इस शास्त्र प्रसिद्ध कार्य कारण रूप जगत को जो अकुण्ठित दृष्टि होने के कारण साक्षी रूप से देखते रहते हैं उनसे लिप्त नहीं होते, वे चक्षु आदि प्रकाशकों के भी परम प्रकाशक प्रभु मेरी रक्षा करें ॥४॥
कालेन पंचत्वमितेषु कृत्स्नशो लोकेषु पालेषु च सर्व हेतुषु ।
तमस्तदाल्ल्ल्सीद गहनं गभीरं यस्तस्य पारेभिविराजते विभुः ॥५॥
समय के प्रवाह से सम्पूर्ण लोकों के एवं ब्रह्मादि लोकपालों के पंचभूत में प्रवेश कर जाने पर तथा पंचभूतों से लेकर महत्त्वपर्यंत सम्पूर्ण कारणों के उनकी परमकरुणारूप प्रकृति में लीन हो जाने पर उस समय दुर्जेय तथा अपार अंधकाररूप प्रकृति ही बच रही थी। उस अंधकार के परे अपने परम धाम में जो सर्वव्यापक भगवान सब ओर प्रकाशित रहते हैं वे प्रभु मेरी रक्षा करें ॥५॥
न यस्य देवा ऋषयः पदं विदु-र्जन्तुः पुनः कोर्हति गन्तुमीरितुम ।
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो दुरत्ययानुक्रमणः स मावतु ॥६॥
भिन्न-भिन्न रूपों में नाट्य करने वाले अभिनेता के वास्तविक स्वरूप क्रो जिस प्रकार साधारण दर्शक नहीं जान पाते, उसी प्रकार सत्त्व प्रधान देवता तथा ऋषि भी जिनके स्वरूप को नहीं जानते, फिर दूसरा साधारण जीव तो कौन जान अथवा वर्णन कर सकता है-वे दुर्गम चरित्र वाले प्रभु मेरी रक्षा करें ।।
दिदृक्षवो यस्य पदं सुमंगलम विमुक्त संगा मुनयः सुसाधवः ।
चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने भूतत्मभूता सुहृदः स मे गतिः ॥७॥
आसक्ति से सर्वदा छूटे हुए, सम्पूर्ण प्राणियों में आत्मबुद्धि रखने वाले, सबके अकारण हितू एवं अतिशय साधु स्वभाव मुनिगण जिनके परम मंगलमय स्वरूप का साक्षात्कार करने की इच्छा से चन में रह कर अखण्ड ब्रह्मचार्य आदि अलौकिक व्रतों का पालन करते हैं, वे प्रभु ही मेरी गति है ॥७॥
दोस्तों,बाकी रह गए स्त्रोतम को आप इस पीडीएफ़ को डाउनलोड करके पढ़ सकते हैं।
Conclusion/निष्कर्ष
अगर आपके ज़िन्दगी में उन्नति के सारे रास्ते बंद हो गए हो,आपने बहुत प्रयास किया हो लेकिन जीवन में तरक्की नहीं मिल पा रही हो या फिर कोई भी विकल्प ना दिखे ऐसी स्थिती में रोज़ सुबह सूर्योदय के समय या सूर्योदय के पहले गजेंद्रमोक्ष का पाठ करना आपके लिए विशेष लाभकारी हो सकता है।
इस Gajendra Moksha in Hindi Pdf पीडीएफ़ फाइल पर हमारा किसि भी तरह का कोई अधिकार नहीं है। इसको सर्च करने वालें सही पाठकों के पास यह फाइल पहुँच सके यही हमारा प्रयास है।
साथियों,हमारा वेबसाईट एजुकेशनल पे आधारित है। अगर आपको किसि भी तरह का पीडीएफ़ के जरूरत हो तो आप हमारे वेबसाईट को जरूर विज़िट करें।
pdfrail.com को विज़िट करने के लिए धन्यवाद। भगवान विष्णु जी के कृपा सदैव आप पर बने रहें।
also read:Hardev Bahri Samanya Hindi Book Pdf Free Download